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वो बत्ती !

" वो छोटी सी गुमराह बत्ती, वो अदृश्य सी रोशनी। जलती थी ठीक सामने मेरे खिड़की के। अंजान सी, अदृश्य सी। जो थी वहीं, हर शाम, हर रात। पर दुख तो हुमे तब तक न था, जब हो गयी वो बत्ती गायब, वो रोशनी गायब, और शायद, हम भी गायब। वो छोटी सी गुमराह बत्ती, वो अदृश्य सी रोशनी।" - क्ष. ह. सि (khs)