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Showing posts from March, 2012

the sun

The Sun was never interested in creating shades. It always wanted to spread plain SUNSHINE...

कौन जीता?

(monologue) सुभाष कक्षा में हर बार सबसे अव्वल नंबर लता था , पर इस्स बार मैंने परीक्षा में बहुत अच्छा किया था , अरे मेहनत जो की थी। तो आज था वो दिन... हुमे अपने अंक मिलने वाले थे। मैं स्कूल के लिए उस दिन जल्दी उठा , कुछ उम्मीद और बहोत सारी उमंग के साथ । बाबा प्लांट में काम करते थे , और माँ मेरी दो छोटी बहनों के साथ , पूरा दिन घर में बिताती। हमारा घर प्लांट के बहुत पास था , बाबा आराम से उठते और चल देते काम पर। मेरा स्कूल इस इलाके से थोड़ा दूर था , तो मुझे कुछ जल्दी ही निकालना पड़ता , बाबा की साइकलपर बैठ , मैं रोज़ की तरह , उसस दिन भी निकाल पड़ा , की क्या पता मेरे नंबर सुभाष से अछे आए हैं। क्या पता! तो मास्टर जी एक-एक कर सबके अंक बताने लगे। पूरी कक्षा बैठी थी सांस थाम , मन-ही-मन जप रही थी ऊपर वाले का नाम। 50 में से किसी के 25 तो किसी के तीस , और फिर आया सुभाष का नाम 45 नंबर । मास्टर जी बहोत खुश थे , और मैं बिलकुल भी नहीं , सारी कक्षा ने तालियाँ बजाई , तो मुझे भी बजाना ही पड़ा। कहीं सुभाष इस बार भी अव्वल तो नहीं ह...

अंधेरा

हम तो बस यूं ही  अंधेरे में रोशनी ढूंढ रहे थे, हुमे क्या पता था की हुमे अंधेरा इतना भा जाएगा।