भूल गया हूँ...
इन तेज़ चलती गाड़ियों के बीच , न दिखे सड़क के उस पार कि गलियां । भूल गया हूँ , इन अंधेरी गलियों में, आँखों पर पट्टी बाँध आँख-मिचौनी खेलना। अब आम बहुत मीठे मिले हैं, पर भूल गया हूँ, उस आम के पेड़ पर चढ़, खट्टे, अध-पके आमों को तोडना। अब ज़िन्दगी चले हैं सीधी सड़कों पर, भूल गया हूँ,उन छोटी-छोटी पग-डंडियों पर खो जाना। अब जब भी पग नीचे जाएँ, चप्पल ही संभाले हैं, भूल गया हूँ, नंगे पैर उस ठंडी माती पर चलना। अब दूर-दूर तक सब दिखे हैं, पर भूल गया हूँ, उस करीबी धुंधली परछाई को देखना , जो शायद मेरी ही थी ।