(monologue) सुभाष कक्षा में हर बार सबसे अव्वल नंबर लता था , पर इस्स बार मैंने परीक्षा में बहुत अच्छा किया था , अरे मेहनत जो की थी। तो आज था वो दिन... हुमे अपने अंक मिलने वाले थे। मैं स्कूल के लिए उस दिन जल्दी उठा , कुछ उम्मीद और बहोत सारी उमंग के साथ । बाबा प्लांट में काम करते थे , और माँ मेरी दो छोटी बहनों के साथ , पूरा दिन घर में बिताती। हमारा घर प्लांट के बहुत पास था , बाबा आराम से उठते और चल देते काम पर। मेरा स्कूल इस इलाके से थोड़ा दूर था , तो मुझे कुछ जल्दी ही निकालना पड़ता , बाबा की साइकलपर बैठ , मैं रोज़ की तरह , उसस दिन भी निकाल पड़ा , की क्या पता मेरे नंबर सुभाष से अछे आए हैं। क्या पता! तो मास्टर जी एक-एक कर सबके अंक बताने लगे। पूरी कक्षा बैठी थी सांस थाम , मन-ही-मन जप रही थी ऊपर वाले का नाम। 50 में से किसी के 25 तो किसी के तीस , और फिर आया सुभाष का नाम 45 नंबर । मास्टर जी बहोत खुश थे , और मैं बिलकुल भी नहीं , सारी कक्षा ने तालियाँ बजाई , तो मुझे भी बजाना ही पड़ा। कहीं सुभाष इस बार भी अव्वल तो नहीं ह