वो छोटी सी लड़ाई।

क्या गलत था, और क्या सही,
क्या बड़ा था, और क्या छोटा,
इन्ही उलझनों में तो फंस के रह गयी,
मैं और तुम, तुम और मैं।

आज भी हम यहीं देखते रहे,
कि क्या-क्या है तुम्हारे पास,
और क्या मेरे पास,
और इसी में सिमटी रह गयी,
लड़ाई तुम्हारी और लड़ाई मेरी।

बस इसी लड़ाई में,
फंस्स कर रह गई,
सोच हमारी,
ज़िन्दगी हमारी।

क्या मेरा, क्या तुम्हारा।

Comments

Popular posts from this blog

The TEA garden visit!

With TIME...

Memories of my 'Chhote Mama'!