कौन जीता?



(monologue)


सुभाष कक्षा में हर बार सबसे अव्वल नंबर लता था,
पर इस्स बार मैंने परीक्षा में बहुत अच्छा किया था,
अरे मेहनत जो की थी।
तो आज था वो दिन... हुमे अपने अंक मिलने वाले थे।

मैं स्कूल के लिए उस दिन जल्दी उठा,
कुछ उम्मीद और बहोत सारी उमंग के साथ ।

बाबा प्लांट में काम करते थे,
और माँ मेरी दो छोटी बहनों के साथ,
पूरा दिन घर में बिताती।

हमारा घर प्लांट के बहुत पास था,
बाबा आराम से उठते और चल देते काम पर।
मेरा स्कूल इस इलाके से थोड़ा दूर था,
तो मुझे कुछ जल्दी ही निकालना पड़ता,
बाबा की साइकलपर बैठ, मैं रोज़ की तरह,
उसस दिन भी निकाल पड़ा,
की क्या पता मेरे नंबर सुभाष से अछे आए हैं।
क्या पता!

तो मास्टर जी एक-एक कर सबके अंक बताने लगे।

पूरी कक्षा बैठी थी सांस थाम,
मन-ही-मन जप रही थी ऊपर वाले का नाम।

50 में से किसी के 25 तो किसी के तीस,
और फिर आया सुभाष का नाम
45 नंबर ।

मास्टर जी बहोत खुश थे, और मैं बिलकुल भी नहीं,
सारी कक्षा ने तालियाँ बजाई, तो मुझे भी बजाना ही पड़ा।

कहीं सुभाष इस बार भी अव्वल तो नहीं हो गया?
क्या मेरी मेहनत कोई फल नहीं मिला?
इतने में मैं मास्टर जी के मुंह से अपना नाम सुना
48 नंबर।
जी हाँ, 48 नंबर

48 नंबर समझते हैं आप?
बड़ी बात है की 50 से सिर्फ 2 अंक कम है,
पर उससे भी बड़ी बात ये है की सुभाष से
पूरे 3 अंक जादा!

तालियाँ मेरे लिए भी बाजी,
और मैं बहुत खुश भी था,
कक्षा में प्रथम जो आया था...
मैं सुभाष से जीत गया था

वापस आते वक़्त मैंने साइकल बहोत तेज़ चलाई,
पहले माँ को बटौंगा
और शाम को बाबा को,
दोनों बहुत खुश जो होते।

पर घर के पास पहुँच ने से पहले ही मैंने देखा,
घर के आस पास पुलिस,
सबक दूर भागा रही थी,
दमकल की गाडियाँ, और एम्ब्युलेन्स,
इतनी भीड़ थी की कुछ समझ ही न आए,
मैंने पता किया तो पता चला,
बहुत लोग अस्पताल में हैं,
माँ भी,
पर हुआ क्या था?


इस घटना को बीते हुये बहुत वक़्त हो गया,
आज मैं 45 साल का हूँ,
और मुझे कुछ दिन लगे समझने के लिए की हुआ क्या था?

यूनियन कार्बाइड का नाम मैं अगले कई जन्मों तक याद रखूँगा,
हमारे भोपाल पर इसी ज़हर ने तबाही मची दी थी,
मेरी ज़िंदगी बदल गयी इसी वजह से,

उस दिन,
बाबा ने प्लांट में ही दम तोड़ दिया,
 मेरी दोनो बहने नहीं बच पायी।
माँ हैं, पर आज भी उतनी ही दुखी।

हम सरकार से आज भी लड़ रहे हैं,
की जो विदेशी कंपनी इसके पीछे थी, उसे सज़ा हो,
वही कंपनी इस बार के लंदन ओलिम्पिक में एक प्रायोजक भी है,
और हम फिजूल में इतने सालों से लड़ रहे हैं,

मैं उस दिन सुभाष से तो जीत गया,
पर मैं ज़िंदगी से हार गया,
हार गया...

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